Har kisi ko.....
हर किसी को खुद की तलाश है इस भीड़ में ,
हम समझे हम ही चले हैं अकेले घर से।
जब देखा भीड़ में हम भी हैं शामिल,
तो लगा क्या अलग है मुझमें और इस भीड़ में।
मैं चला तो था मैं बन के ,
मगर क्या रह पाऊंगा वही इस भीड़ में।
ख़ुशी मिलेगी या जीत का सवाल होगा ,
मेरे अपने पूछेंगे तो क्या हाल होगा।
वो मासूमियत ,वो सच्चाई कहाँ छोड़ आया?
आज ये झूठों का लिबास क्यों ओढ़ आया?
जब तक है जीना ,अब ये सोचना है,
वो सपने थे या ज़ंजीरें थी ज़मीर की।
अब तोड़ के उनको, जो आकाश में उड़ रहा हूँ मैं ,
कितना अच्छा होता इतना आज़ाद न हुआ होता मैं।
वो बचपन, वो माँ की डाँट कितनी प्यारी थी ,
वो बहन का चिढ़ना ,वो मेरा लड़ना कितना अच्छा था।
आज मासूमियत तो कहीं खो गयी है
हर ओर ठग से घुमते हैं।
कोई भरोसा नहीं करता किसी पे
और किसी पे मुझको भरोसा होता नहीं …।
हम समझे हम ही चले हैं अकेले घर से।
जब देखा भीड़ में हम भी हैं शामिल,
तो लगा क्या अलग है मुझमें और इस भीड़ में।
मैं चला तो था मैं बन के ,
मगर क्या रह पाऊंगा वही इस भीड़ में।
ख़ुशी मिलेगी या जीत का सवाल होगा ,
मेरे अपने पूछेंगे तो क्या हाल होगा।
वो मासूमियत ,वो सच्चाई कहाँ छोड़ आया?
आज ये झूठों का लिबास क्यों ओढ़ आया?
जब तक है जीना ,अब ये सोचना है,
वो सपने थे या ज़ंजीरें थी ज़मीर की।
अब तोड़ के उनको, जो आकाश में उड़ रहा हूँ मैं ,
कितना अच्छा होता इतना आज़ाद न हुआ होता मैं।
वो बचपन, वो माँ की डाँट कितनी प्यारी थी ,
वो बहन का चिढ़ना ,वो मेरा लड़ना कितना अच्छा था।
आज मासूमियत तो कहीं खो गयी है
हर ओर ठग से घुमते हैं।
कोई भरोसा नहीं करता किसी पे
और किसी पे मुझको भरोसा होता नहीं …।
Comments
Mai chala toh tha mai banke
Magar kya reh paunga wahi is bheed me